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लेखनी प्रतियोगिता -26-Jun-2023 फोटो फ्रैम में बंधती नारी



                   फोटो फ्रैम में बंधती नारी

       हमारा समाज हमेशा से औरत को  न जाने कितने फोटो के फ्रैम में बांधता आया है।  ऐसा ही  कुछ नताशा के साथ हुआ।

      रमन व आशा की शादी को दो साल होगये थे। दोनौ ही जाब करते थे। गाँव में ही रहते थे। इसलिए संयम से रहते थे आशा  का जल्दी माँ बनने का कोई इरादा नहीं था। इसके विपरीत उसकी सास उसको हर रोज ही पूछती कि  मां बनने का कब इरादा है। अब रोज रोज इस तरह की बातें सुनकर आशा ने  माँ बनने का इरादा बना लिया।

     जब आशा की माँ बनने की खबर उसकी सास सुशीला को मिली ।तब वह बहुत खुश हुई। अब सुशीला  की एक ही अभिलाषा थी कि बेटा ही हो। लेकिन ऐसा नही हुआ ।आशा ने  सुशीला की इच्छा के विपरीत एक बेटी को जन्म दिया। यह तो ईश्वर की मर्जी थी कि बेटा दे अथवा बेटी।

      आशा की सास बहुत दुःखी होगयी । वह आशा को अन्दर ही अन्दर गालियां देरही थी। बेटी का नाम नताशा रखा गया। सुशीला  को नताशा से कोई प्यार नहीं था। वह तो केवल दादी का धर्म निभारही थी। अब  सुशीला आशा को दूसरा बच्चा पैदा करने  के लिए बिवश कर रही थी। लेकिन रमन व आशा इसके लिए तैयार नहीं थे। वह नताशा से ही खुश थे।

     नताशा जैसे जैसे बडी़ होरही थी बैसे ही दादी की नताशा के ऊपर पाबन्दियां भी बढ़रही थी। नताशा के लिए हर बार नया फोटो फ्रेम तैयार किया जाता और उसमें नताशा को  फिट कर दिया जाता था।

   नताशा ने जैसे ही  चौदह बर्ष की दहलीज पर कदम बढा़या और उसे पहली बार पीरियड आया बैसे ही उसकी दादी ने उसके लिए एक नया फोटो फ्रैम तैयार कर दिया। अब उसको फ्राक पहनने पर पाबन्दी लग गयी और उसको केवल  सलवार सूट पहनने का फतवा जारी कर दिया गया। यह नताशा के जीवन का अगला फोटो फ्रैम था जिसमें उसे सजाया गया। आशा को अपनी सास की माननी पडी़ थी।

      दादी के हिसाब से नताशा अब बच्ची नहीं रही  थी। दादी हमेशा यह कहते नहीं थकती थी कि नताशा को  पराये  घर जाना है।नताशा की दादी तरह तरह के अंकुश लगाती रहती थी जिससे नताशा का जीना मुश्किल होगया था।

      स्कूल में लड़के लड़किया साथ पढ़ते थे आपस में बात भी करते थे एक दूसरे को किसी किताब की जरूरत होती तब आपस में आदान प्रदान भी करते थे।  एक बार तो  हदहोगयी कि नताशा अपने स्कूल से आरही थी कि रास्ते मे उसका  सहपाठी सुलभ मिल गया । नताशा उससे सड़क के किनारे  खडे़ होकर बात करने लगी। 

     नताशा के मुहल्ले का कोई ब्यक्ति वहाँ से गुजर रहा था कि उसने उन दोनौ को बात करते हुए  देख लिया। उसने घर आकर नताशा की दादी को बता दिया। बस फिर क्या था नताशा के लिए आज एक नया फोटो फ्रैम तैयार होगया जिसमें उसको सजाना था।।

       नताशा के घर पहुँचते ही  दादी ने पूछताछ आरम्भ करदी कि वह कौन लड़का था जिसके साथ वह इतनी देर तक बातचीत कर  रही थी। नताशा को हर बार एक नये फोटो फ्रैम में फिट कर दिया जाता था। इससे वह बहुत परेशान रहने लगी। दादी ने उसके ऊपर बन्दिशौ के अम्बार खडे़ कर दिये थे।

     नताशा जब अपनी मम्मी पापा से इस विषय में बात करना चाहती वह पल्ला झाड़ लेते। नताशा अब यहाँ से आजाद होना चाहती। वह किसी नयी मुसीबत के आने से फहले अपनी दादी से छुटकारा पाने की सोचने लगी। और उसने अपनी सहेली के साथ मिलकर होस्टल में जाने का मन बना लिया। अब केवल मम्मी पापा की इजाजत की जरूरत थी।

      इसके लिए नताशा ने मम्मी पापा को ढेर सारा मक्खन लगा दिया। नताशा इन फोटो के फ्रैम से निकलकर होस्टल पहुँच गयी और 
 दादी के नये फतवे से  दूर चली गयी।

       इस तरह हमारा समाज नारी को कैद करके एक फोटो में कैद करके रखना चाहता है। नारी के ऊपर अनेक बन्दिशे लगा देते है। मर्द इन सबसे मुक्त रहते है।

आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना ।
नरेश शर्मा " पचौरी "


     

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7 Comments

HARSHADA GOSAVI

05-Jul-2023 10:14 AM

nice story

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Abhilasha Deshpande

28-Jun-2023 03:38 AM

Good story

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Shnaya

27-Jun-2023 06:04 PM

Nice one

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